Saturday, May 12, 2012


द~यू-धुपणु

बरसों बिटे
हम गौ बंद
ह~वैकि
कनां छां
द~यू अर धुपणु।
मनाणां छां
अपणां
द~यो-द्यबतों थैं
पर वों फर
न अणक न मणक।
वों थैं न
घूण खांद
न उप्पन
वो त बस
ड़डणा अर
टटक नाथ।
जथग हम
हाथ ज्वड़ै कनां
उथगै वो
हमुथै
आंख दिखाणा।
साल दर साल
कनां छां हम
पूजा अर
खद~यडु
गड़णां छां
गड़णां छां
उच्यणु।
द्यबतों कु बि
यांम क्वी दोष
नीचा जब
ड़ांगर हि
बाट से अबट~ट
अर केर से बे लैन
ह~वै कि
जग्ग-बग्ग हूणां छन
त द्यबतों ल बि
बयाळ त कन्नि ही चा।
वों क ठौ भौ फरैं
जब एक जुट~ट नि होणां
सब्बि बस
निपटाणां खातिर
वोंकि पूजा कन्ना
त द्यबतों ल
किलै दीण परचु
किलै कन्न
हमु फरैं
ओट।
जब हम पौंछाणा
छां वोंकु
मान-सम्मान
थैं चोट।
बिना पियां
जागर नि लगणां
बिना पियां
मंत्र नि पढ़ेणां
बिना पियां तरपण
नि दियेणां
त फिर हमर
उप्पर कापान
कन्क्वै खड़ हुणिन?
द्यवता त
भौ अर विश्वास
गौबंद अर धुपणु
मंगदिन पर
वों जब क्वी कैर जाण
ठौ अर भौ
दिखै जाण।
सुदि~द
द~यू अर धुपणु कैकि
बेमन ल
यीं पूजा ल
सुफल कनक्वै हूण?

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