Friday, November 11, 2011

मी बिजरि रै जैल्या क्या?
मैं कू त इथगा बि भिड़ि चा तुम बचेग्यां।
भाग चा म्यरू तुम दगड़ि कुछ दिन बितै छा।
झणि क्या ह~वै या बात मी समझ आई
तुम बिजरि मेरि भूख निंद हरचि ग्याई।
सोचु छौ इन्नि जिन्दगी का दिन कटेला
क्या जणुणु छौ द्वी दिनों की हैंसि चा।
तुम बिजरि अब जिन्दगी बणवास चा
तुम बतै जा कनक्वै  मिन अब कटणु चा?
बित्यां दिनौ की माळा जब मी गठ~यादू
झट तुमरि ही मुखड़ि मेरू समणि आंद।
सोचदां स्वचदा जबरि मीं याद औंद
झणि किलै आंख्यों कु पाणी निगरि जांद।
जणदु छौं मीम कुछ यन्नु खास नी चा
जै से क्वी मेरी तरपां झट खिच्ये कि आ।
पण तुमन झणि क्य कैरै समझम नि आई
मेरि सुधबुध जाम सब्बि कुछ हैरि द~याई।
तुम बथा मिन्न तुम बिजरि कन्वकै कि रैण?
अवनि मेरि तुम मी बिजरि रै जैल्या क्या?...... 2 नवम्बर, 2011.




 

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