गढवाली का युवा कवि, कथाकार दिनेश ध्यानी जी दगड भीष्म कुकरेती कीं लिखाभेंट.
भीष्म कुकरेती: अपण कथगा कविता लेखी आलीन अर कथगा छपी गेन पर जरा प्रकाश डाळी.
दिनेश ध्यानी.
नमस्कार कुकरेती जी. कना चा आप? मेरु लेखन का फिल्ड मा
अज्यों तक मीन लगभग द्वो सो गढ़वाली कविता लिखी यालिन. एक कविता
संग्रह "गंगा जी का जो छन
भैजी" का नौ से छपे गे अभी. गर्हाली कहानी संग्रह गंगा
की बेटी छपना खुनी ज्यों चा. अर्
एक कविता संग्रह अज्यों तैयार चा. मी थाई लोक जीवन अर् समस्याओं से आधारित कविता
लेखुनु अच्छू लगदा. हिंदी की के कविता संग्रह मुझे मात मारो, छापना
का वास्ता तयार च अर् एक लघु उपन्याश बांजाधार भी
छापना का वास्ता तयार चा, हिंदी की कई कहानी अर् छुट पुट कविता कई लेखिन. अर्
अज्यों भी जब मौका मिलदा कुछ ना कुछ लेखनु रैंदु.
भीष्म कुकरेती; कथाओं बारा मा बि जरा बथाव्दी की कै तरं क कथा लिखदआ.
दिनेश ध्यानी. मेरु
एक कविता संग्रह गढ़वाली भाषा की छापना का वास्ता जायीं च. मी कहानी भी लोक जीवन
अर् परिवेश की सची घटनाओं से सम्बंधित लेखादु. यो मेरी पैलू कहानी संग्रह चा.
अज्यों तक जो भी लिखी खासकर कहानी अर् उपन्यास आदि वो सभी अपरू परिवेश अर् लोक
जीवन से ही लियोन चा. कहानी हम्रू भुग्त्यों याँ जन्यों, सम्ज्यों जीवन की या
सुन्यों कथा कहानियों माँ बीटी की ही अधिक होंद. बनावट अर् खलिश कल्पना से खी भी
कहानी या रचनाओं की आत्मा मोरी जानद. इले हकीकत से वास्ता हो ता अचू रैंदु. यो
मेरु मनाणु चा.
भीष्म कुकरेती : आप कविता
क्षेत्र मा किलै आएं.
दिनेश ध्यानी. जब
मिल पैली कुछ लिखी ता वा कविता ही छाई. १९८४ की बात चा, मिन वी को इम्तन दीयों छो.
बस वाबरी एक कविता लिखी. असल में व गज़ल लिखी छाई. बस लेखन को शौक राई अर् लेखन
बैठू जो भी मन माँ बिचार आयें. ये फिल्ड माँ किले आऊं मी थें भी पता नि चा.
भीष्म कुकरेती: आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
दिनेश ध्यानी.
प्रभाव? मीथे ता अपरू ही प्रभाव देखेनु च बाकि पाठक ब्वालाला मी कुछु नि बोली सकदु
ये बार मा.
भीष्म कुकरेती : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को
कथगा महत्व च ?
दिनेश ध्यानी..
जथागा दाल का डगरी भात अर् खूटों का दगडी हाथ. यानी की सौब कुछ चयेंदु. रात
सिन्दाओ भी अपरा खल्ला का समणी कागज, पेन अर् मोबाइल रख्दु... रात अचन्चक कभी बर्र
नींद खुली जानद अर् तबरी अगर बिचार टीपी दे था भलू निथर गई ता फिर हाथ नि अओनु. एक
लहर चा लेख्न भी, वे खुनी बातावरण भी चयेंदु अर् माहोल भी, बाकि बिचार च कबर आजो,
कनु आजो कुछ नि बोल्येंदु. परीवश कु यकुलाश नि भी हो ता बिचारों कु यकुलाश जरुई
च... तभी आप अच्छी कल्पना अर् रचना करी सक्दो.
भीष्म कुकरेती: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप
का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता
लिखण मा माफिक ओंदन?
दिनेश ध्यानी. मी
कागज में लेख्दु अर् टाइप भी करदू कंप्यूटर फरै.
भीष्म कुकरेती: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त
क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?
दिनेश ध्यानी. याँ
का वास्ता हमेशा अपर दगडी कागज अर् कलम रख्दु. रात सिन्दोव भी सिर्वान का समानी
कागज कमाल रैन्द्द.
भीष्म कुकरेती: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन
विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर
क्या करदा ?
दिनेश ध्यानी. वे बगत
मी कोसिस करदू की कुछ लिखू च कुछ भी हो पर अगर आपन बिचार कागज मा उकरी दिन ता ठेक
नथार समुद्र की लहर की तारों कुछ नि रंदु. बिचार ऐया अर् अगर नि संभाली ता गई.
भीष्म कुकरेती: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवीज करदां ?
दिनेश ध्यानी. जानू
टाइम मिलदा उठ्गा दफा देख्दु अर् हर बार कुछ ना कुछ देखि जानद.
भीष्म कुकरेती: क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई
छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को
प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या
हूण चएंद /
आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण
ल़े च ?
दिनेश ध्यानी. कविता
या लेख लिखना का वास्ता क्वी ट्रेनिंग नि ले. बस मन मा बिचार आओना रैन अर् लेखनु
रों.
भीष्म कुकरेती: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की
कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?
दिनेश ध्यानी. देश
अर् काल को प्रभाव ता होन्दु चा. बाकी मेरी रचनों का बारम ता पाठक ही बता सक्दिन.
भीष्म कुकरेती: आप का कवित्व जीवन मा
रचनात्मक सुखो बि आई होलो त
वै रचनात्मक सुखा तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?
दिनेश ध्यानी. मन की
बात चा, कभी कुछ कभी कुछ चल्नु रेंदा, कोशिश करदू की हर भाव माँ कुछ ना कुछ लेखनु
राउं. कभी कभी लगी की केखुनी लेखन, पर फिरभी यो हमारू धर्म च अर् जब भगवान ला कुछ
बिचार दीयों चा ता वे थें कागज माँ लेखनु रैंदु.
भीष्म कुकरेती: कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?
दिनेश ध्यानी.
इकुलास की जरुरत होंदी च पर बिचार जबर आई तबरी लिखी दे, कोसिस करी की कागज अर् कलम
हमेशा डागदरी रो, फिर चुप से कागज मा मन का बिचार उतारी दे.पर कभी कभी लगदु च जबर
आप कुछ लेखन चा, कुछ सोचना चा ता वेबरि कैन कुछ बोली दे, या कुछ करिदे तब कुछ
परेशानी होंदी च, बिचारों को तारतम्य टूटी जा ता भुरु लगदु.
भीष्म कुकरेती: इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति
से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद ?
इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद .
दिनेश ध्यानी. फरक
ता जरुर पोडद, कबरी जरुरी काम या टाइम घर वोलों थें नि दे सकदु. तबरी भुरु लगदा.
ऑफिस कु कम कभी नि रोक्दु. मेरु मन्नू चा की हमारू काम ही हमारू भगवन च. ये वास्ता
अपरू काम थाई कभी नि रोक्दु या कभी कभी बिचार ओंद ता वेबरि कागज माँ उतारी देन्दु,
बादम टाइम मिली ता पूरी रचना लिखी दे. हाँ पारिवारिक अर् सामाजिक जीवन जरुर
प्रभावित होंद. सबसे भिन्डी परिवार थें परेशानी होंदी...
भीष्म कुकरेती: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान
क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि
करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?
दिनेश ध्यानी. मेरी
पंक्ति जो भी होंदी ना शुरू की वों से ही मी अग्नि चल्दु, मेरी रचना माँ कभी भी
इनु नि हवे की पैली लिखी पंक्ति थें छोड़ी का नई रचना लिखू. कोशिश करदू की जो मन
माँ बिचार आई वे से अग्ने बढे जा. फिर भी कभी कभी एक रचना की द्वि लेन्यों बीटी
द्वि अलग अलग रचना निकली जनिदी, खासकर कविता का मामला माँ एनो होन्दा.
भीष्म कुकरेती: जब कबि आप सीण इ वाळ
हवेल्या या सियाँ रैल्या अर
चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
दिनेश ध्यानी. मेरी
कलम अर् कागज हमेशा मी दगरी रैद, रात, बेरात जबरी भी बिचार औ, वे थें उतारी
देन्दु, बिचार कबरी ऐ जाऊ कुछ बोली नि सकदा.
भीष्म कुकरेती: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
दिनेश ध्यानी. ना
कभी मिन कई सब्द्कोश की मदद ने ले. मेरु
मन मा जो सबद आगे वे से ही अगने चल्दु.
:भीष्म कुकरेती हिंदी आलोचना तैं क्या
बराबर बांचणा रौंदवां ?
दिनेश ध्यानी. ना.
कभी कबर टाइम मिली ता बांची देन्दु.
भीष्म कुकरेती: गढवाळी समालोचना से बि
आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
दिनेश ध्यानी. ह्वे
सकदा, मिन बोली ना की देश अर् काल कु प्रभाव से कवी भी लिखवार कब तक बाचु रोलु?
बाकि पाठक बताई सक्दिन. मिन क्या बोलण...?
भीष्म कुकरेती : भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान
काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप यां से बेफिक्र रौंदवां
दिनेश ध्यानी. फिकर
ता के बी चीज अर् कामा की कभी नि करदू. जो ह्वेजो भलु, जो नि ह्वे वो करणकी कोशिश
करदू...कर्म कनु हमारू फराज च. खासकर अपनी बोली भाषा का वास्ता कुछ ह्वे सकू ता वे
थें अपरू फर्ज मनिकी चल्दु.
भीष्म कुकरेती : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
दिनेश ध्यानी. कुछ
खास नि जब भी मौका मिली ता वे कु साहित्य पढ़ी देनु.
भीष्म कुकरेती: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
दिनेश ध्यानी.
छुटपुट जब लगा लगी तब कुछ पढ़ी दे....बस खास कुछ नि कद्रू.
भीष्म कुकरेती : आप हिंदी, अंग्रेजी, या हौरी भाषाओं क क्वा क्वा कविता , कथा तैं
गढवाली मा अनुवाद करण चैल्या ?
दिनेश ध्यानी. हां.
अगर मौका मिली ता जरुर कनु चंदू. खासकर गढ़वाली की रचनों कु अनुवाद होर्यों की
भाषा माँ होलू ता हमारी भाषा समृद्ध होली...
भीष्म कुकरेती: आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
दिनेश ध्यानी. बालपन
मा दुन्गों बजे की सारयाँ बजा बाजा सिकी, मेला खौलों म हुडुकी, डोंर बजे, ब्यो
बारातों अर् गमत का बाना हारमोनियम, बसूली, तबला, अर् नगर दमो बजे. बचपन मा अपर
गांव माँ ब्यों बरत्यों माँ रामलीला खेली तबरी संगीत अर् साज की सोहबत मिली. पण
रोटी का चक्कर माँ सभी कुछ छुटी गे. अब ता खलिश लालसा रेगे. मन करदू की कुछ माहोल
मिलु ता कुछ खुद बिसरों पर अब ता रोटी की राकरोड़ अर् वाँ का बाद लेखन से फुर्सत
नि मिलदी.
धन्यबाद कुकरेती जी. आप जाना विद्वत मन्ख्यों का दगडी बात कनु भलु
लगी. आप गढ़वाली साहित्य अर लिख्वारों का वास्ता खार्यों काम कना छा. समाज अर्
कलमकार सदन्नी
आपका आभारी राला.